Ÿाीसगढ़ राज्य में मानव विकास सूचकांक - एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

 

डा बी एल सोनेकर1 रश्मि पांडे2

1सह-प्रध्यापक अर्थशास्त्र पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ..

2शोध छात्रा अर्थशास्त्र पं. रविशंकरशुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ..

ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू ेवदमांतचजतेन/हउंपसण्बवउ

 

किसी भी देश के आर्थिक विकास में भौतिक पूँजी के साथ-साथ मानवीय पूँजी का भी महत्व होता है। व्यवहार में पूँजी स्टाॅक की वृृद्धि पर्याप्त सीमा तक मानव पूँजी निर्माण पर निर्भर रहती है जो कि देश के सभी व्यक्तियों के ज्ञान, कुशलता एवं क्षमताएँ बढ़ाने की प्रक्रिया है। ‘‘मानवीय साधन का विकास ज्ञान, योग्यता समाज के व्यक्तियों  की कार्यक्षमता में वृद्धि करने वाली एक प्रक्रिया हैं आर्थिक अर्थो में यह कहा जा सकता है कि यह मानवीय पूँजी एक संचय है, जिसका अर्थव्यवस्था के विकास में प्रभावशाली विनियोग किया जाता है। मानवीय संसाधनों का महत्तव विकासशीलन देशों अथवा अर्द्धविकसित देशों में बहुत अधिक है, क्योंकि मानवीय पूँजी के द्वारा ही प्राकृतिक संसाधनों एवं भौतिक पूँजी का उपयोग तीव्र गति से विकास कार्यो में करना संभव होता है।

 

मानव विकास सूचकांक

 

प्रस्तावना

किसी भी देश के आर्थिक विकास में भौतिक पूँजी के साथ-साथ मानवीय पूँजी का भी महत्व होता है। व्यवहार में पूँजी स्टाॅक की वृृद्धि पर्याप्त सीमा तक मानव पूँजी निर्माण पर निर्भर रहती है जो कि देश के सभी व्यक्तियों के ज्ञान, कुशलता एवं क्षमताएँ बढ़ाने की प्रक्रिया है। ‘‘मानवीय साधन का विकास ज्ञान, योग्यता समाज के व्यक्तियों  की कार्यक्षमता में वृद्धि करने वाली एक प्रक्रिया हैं आर्थिक अर्थो में यह कहा जा सकता है कि यह मानवीय पूँजी एक संचय है, जिसका अर्थव्यवस्था के विकास में प्रभावशाली विनियोग किया जाता है। मानवीय संसाधनों का महत्तव विकासशीलन देशों अथवा अर्द्धविकसित देशों में बहुत अधिक है, क्योंकि मानवीय पूँजी के द्वारा ही प्राकृतिक संसाधनों एवं भौतिक पूँजी का उपयोग तीव्र गति से विकास कार्यो में करना संभव होता है।

 

मानवीय विकास की अवधारणा की व्याख्या करते हुए यू.एन.डी.पी. की मानवीय विकास रिपोर्ट ;1997द्ध में उल्लेख किया कि ‘‘यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनसामान्य के विकल्पों का विस्तार किया जाता है और इसके द्वारा उनके कल्याण के उन्नत स्तर को प्राप्त किया जाता है। यही मानवीय विकास की धारणा का मूल है। ऐसे सिद्धांत तो सीमाबल होते हैं और ही स्थैतिक होते हैं। परंतु विकास के स्तर को दृष्टि में रखते हुए जनसामान्य के पास तीन विकल्प है - एक लम्बा और स्वस्थ जीवन व्यतीत करना, ज्ञान प्राप्त करना और अच्छा जीवन स्तर प्राप्त करने के लिए आवश्यक संसाधनों तक अपनी पहँुच बढ़ाना।

 

मानव विकास रिपोर्ट ;1997द्ध में संबंध में उल्लेख कियाआय केवल एक विकल्प है, जो लोग प्राप्त करना चाहेंगे, चाहे यह बहुत महत्वपूर्ण है, परंतु यह उनके समग्र जीवन का सार नहीं है। आय एक साधन है, जबकि मानवीय विकास एक ध्येय है।’’

 

 

महबूब-उल-हक के मार्गदर्शन में 1990 में मानवीय विकास रिपोर्ट के प्रथम प्रकाशन पश्चात् कल्याण के मापों का निर्माण करने और उन्हें और परिष्कृत करने के लिए प्रयास किए गए। तीन माप विकसित किए गए:- वे हैं मानवीय विकास सूचक, लिंग संबंधित विकास सूचक और मानवीय निर्धनता सूचक।

 

1.2  मानवीय विकास सूचक:

यह 1990 से जारी किया जा रहा है इसकेे निर्माण में तीन संहार का प्रयोग होेता है।

1      जीवन प्रत्याशा:

एक लम्बे और स्वास्थ्य जीवन के माप के लिए जन्म पर जीवन प्रत्याशा।

 

2      ज्ञान:

इसके माप के लिए बालिग साक्षरता दर (दो तिहाई भारांश) और समग्र प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च दर्जा में कुल नामांकन अनुपात (एक-तिहाई भारांश) के आधार पर आंका जाता है।

3      एक अच्छा जीवन स्तर:

जिसका मापन प्रति व्यक्ति आय यू.एस.डाॅलर क्रय शक्ति समता के आधार पर किया जाता है।

 

मानव विकास सूचकांक का परिकलन करने से पूर्व इन तीनों आयामों के अलग-अलग सूचकांक तैयार किए जाते है। इस उद्देश्य के लिए अधिकतम एवं न्यूनतम मूल्यों का प्रत्येक सूचक के लिए चुनाव किया जाता है।

 

प्रत्येक आयाम के निष्पादन को 0 और 1 के बीच मूल्य रूप में इस फार्मूले के प्रयोग से प्राप्त किया जाता है।

आयाम सूचक त्र वास्तविक मूल्य - न्यूनतम मूल्य

       अधिकतम मूल्य - न्यूनतम मूल्य

 

मानवीय विकास सूचक इन तीनों आयाम सूचकों का साधारण औसत है।

 

राज्य के आर्थिक विकास के दृष्टि से मानव विकास एक प्रमुख उद्देश्य है जबकि आर्थिक संवृद्धि इस उद्देश्य का साधन मात्र है। आर्थिक विकास की संपूर्ण प्रक्रिया का अंतिम उद्देश्य स्त्रियों, पुरूषों और बच्चों की वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लक्ष्य के रूप में देखना मानव की स्थितियों में सुधार करना और लोगों के विकल्पों में विस्तार करना है।

 

मानव विकास ऊँची उत्पादकता का साधन है भली प्रकार से पोषित, स्वस्थ, शिक्षित, कुशल, और सर्तक श्रम शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्पादक परिसंपत्ति है। अतः पोषण, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा में निवेश उत्पादकता के आधार पर उचित है।

 

 

यह मानव पुनरूत्पादन को धीमा करके परिवार के आकार को छोटा करने में सहायता  पहुँचाता है। यह सभी विकसित देशों का अनुभव है कि शिक्षा के स्तर (विशेष रूप से लड़कियों के शिक्षा के स्तर) में सुधार, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता और बाल मृत्यु दर में कमी से जन्म दर में गिरावट आती है। शिक्षा में सुधार से लोगों में छोटे परिवार के प्रति चेतना पैदा होती है और स्वास्थ्य में सुधार और बाल मृत्यदर में गिरावट आती है। गरीबी में कमी से एक स्वस्थ सामाज के गठन, लोेकतंत्र के निर्माण और सामाजिक स्थिरता में सहायता मिलती है, साथ ही मानव विकास से सामाजिक उपद्रवों कोे कम करने में सहायता मिलती है और इससे राजनीतिक स्थिरता बढ़ती है।

 

भौतिक पर्यावरण की दृष्टि से भी मानव विकास अच्छा है गरीबी में कमी से वनों के विनाश, रेगिस्तान के विस्तार और भूक्षरण में कमी आती है। जनसंख्या में वृद्धि और जनसंख्या का घनत्व  पर्यावरण को प्रभावित करते है।

 

उपर्युक्त व्याख्या से यह स्पष्ट है कि मानव विकास प्रतिमान में सम्पूर्ण समाज जाता है कि केवल अर्थव्यवस्था। इसके अन्तर्गत राजनीतिक, सांस्कृतिक औेर सामाजिक कारकों को उतना ही महत्व दिया जाता है जितना कि आर्थिक कारकों को और भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि उद्देश्यों और साधनों के बीच सावधानी के साथ अंतर किया जाता है।

 

भारत ने तो बहुत पहले आर्थिक संवृद्धि में मानव पूँजी के महत्व को समझ लिया था। सातवीं पंचवर्षीय योजना में कहा गया है- एक विशाल जनसंख्या वाले देश में तो विषेष रूप से मानव संसाधनों के विकास को आर्थिक विकास की युक्ति में महत्वपूर्ण स्थान देना होगा। उचित शिक्षण-प्रशिक्षण पा कर एक विशाल जनसंख्या अपने आप ही आर्थिक संवृद्धि को बढ़ाने वाली, परिसंपŸिा बन जायेगी साथ ही यह वांछित दशा में सामाजिक परिवर्तन भी सुनिश्चित कर देगी। मानव पूँजी तथा आर्थिक संवृृद्धि के बीच कारण प्रभाव संबंध का स्पष्ट निरूपण कठिन होता है। परंतु ये दोनों साथ-साथ संवृृद्धि होते पाये गये है। सकल घरेलु उत्पाद की वृद्धि में मानव पूँजी की वृद्धि का निर्णायक योगदान रहता है। भारत के संदर्भ में यह कहा गया है कि 2005. 2020 की अवधि में 7 वर्ष से ऊपर शिक्षा के औसत वर्षो में 40 प्रतिशत की वृद्धि की संभावना है। विश्व बैंक ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट भारत और ज्ञान अर्थव्यवस्था शक्तियों और अवसरो का सदुपयोग में कहा है कि भारत अपने आपको एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित कर  सकता है, यदि यह भी उतने ज्ञान का  प्रयोग करे जितना आयरलैण्ड करता है। इस रिपोर्ट मंे आगे कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के संक्रमण को संभव बनाने वालेे सारे मुख्य Ÿ जैसे कुशल श्रमिकों का विशाल समूह, सुचारू रूप से कार्य कर रहा लोेकतंत्र तथा विस्तृत एवं विविधतापूर्ण वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय आधारभूत संरचनाएँ विद्यमान है। अतः इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में आगे चलकर मानव पूँजी निर्माण ही इसकी अर्थव्यवस्था को आर्थिक संवृद्धि के उच्च पथ पर ले जाएगा।

 

अतः मानव पूँजी निर्माण की एक उपर्युक्त रणनीति का निर्माण कर विद्यमान तथा भावी समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है। क्योंकि मानव पूँजी निर्माण विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो निरंतर किए जाने वाले प्रयासों के फलस्वरूप दीर्घकाल में फलीभूत हो पाती है। अतः राष्ट्रीय स्तर पर कौशल निर्माण के लिए पर्याप्त एवं लगातार विनियोग, असीमित धैर्य तथा पूर्ण सतर्कता की आवश्यकता है।

 

अध्ययन अवधि

प्रस्तुत शोध का अध्ययन वर्ष 2004.2005 से 2013.14 से सबंधित है।

 

शोध का उद्देश्य

1ण्    छत्तीसगढ़़ में प्रति व्यक्ति आय उच्चावचन की स्थिति का अध्ययन करना।

2ण्    छत्तीसगढ़़ में शिक्षा स्तर के उच्चावचन की स्थिति का अध्ययन करना।

3ण्    छत्तीसगढ़़ में स्वास्थ्य स्तर के उच्चावचन की स्थिति का अध्ययन करनां

 

शोध परिकल्पना

1ण्    छत्तीसगढ़़ के मानव विकास सूचकांक में सुधार  हुआ है।

 

शोेध पद्धति

प्रस्तुत शोध प्रबंध द्वितीयक आंकड़ों पर आधारित है।

 

1ण्    अध्ययन पद्धति

प्रस्तुत शोध अध्ययन हेतु वर्णानात्मक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन विधि का उपयोग किया गया है।

2ण्    संमकों का एकत्रीकरण

प्रस्तुत अध्ययन द्वितीयक संमकों पर आधारित है संमको का संकलन विभिन्न सरकारी विभागी द्वारा प्रकाशित, यू.एन.डी.पी., रिपोर्ट, योजना आयोग की रिपोर्ट, छत्तीसगढ़़ सरकार की रिपोर्ट, आर्थिक समीक्षा एवं ग्रंथालय में उपलब्ध विविध साहित्य से किया गया है।

 

छत्तीसगढ़़ का मानव विकास सूचकांक

मानव विकास सूचकांक की अवधारणा का प्रतिपादन वर्ष 1990 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम से सम्बद्ध पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब-उल-हक तथा अन्य सहयोगी अर्थशास्त्री . के. सेन तथा सिंगर हंस ने किया। मानव विकास सूचकांक स्वास्थ्य, शिक्षा आय के स्तर के आधार पर तैयार किया जाने वाला संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यू एन डी पी का सूचकांक हैै। भ्क्प् का अधिकतम मूल्य 1 तथा न्यूनतम मूल्य 0 होता है।

 

छत्तीसगढ़़ मानव विकास आयाम या घटकों की रचना तीन सूचकांकों के आधार पर की गई हैै।

1. स्वास्थ्य सूचकांक, 2. शिक्षा सूचकांक  3. जीवन निर्वाह का स्तर जिसमें क्रय-शक्ति समयोजित प्रतिव्यक्ति आय (डाॅलर) में व्यक्त करतेे हैैं।

 

1 छत्तीसगढ़़ का प्रति व्यक्ति आय सूचक (स्थिर भावों के आधार पर)

हम जानते है कि मानव विकास सूचक का परिकलन करने से पूर्व इन तीनो आयामो के अलग-अगल सूचक तैयार किए जाते हैं। इस उद्देश्य के लिए अधिकतम एवं न्यूनतम मूल्यों का प्रत्येक सूचक के लिए चुनाव किया जाता है।

 

मानव विकास सूचक इस तीनो आयाम सूचकों की साधारण औसत है।

 

उपर्युक्त तालिका में विभिन्न वर्षो में छत्तीसगढ़़ के प्रति व्यक्ति आय सूचकों (स्थिर कीमतों के आधार) प्रदर्शित किया गया है।

हम जानते है कि सूचकों को तीन वर्षो में बाँटा जाता हैः-

उच्च प्रति व्यक्ति आय सूचक - 0.8 या उससे अधिक

मध्यम प्रति व्यक्ति आय सूचक - 0.5 से 0.8 तक

निम्न प्रति व्यक्ति आय सूचक - 0.5 से कम

 

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि जहाँ 2004 से 06 में छत्तीसगढ़़ निम्न प्रति व्यक्ति आय समूह में शामिल या वहीं धीरे-धीरे विकास करते हुयंे वह वर्ष  2006 से 2014 तक में मध्यम प्रति व्यक्ति आय समूह में शामिल हो गया है।

 

2 छत्तीसगढ़़ के साक्षरता का सूचकांक

छत्तीसगढ़़ के साक्षरता सूचकांक को बालिग साक्षरता दर एवं कुल नामांकन अनुपात के योग के आधार पर निकाला गया है।

 

सूत्र रूप मंे देखे तो

 पद्ध प्रथम चरण

बालिग साक्षरता सूचकांक =

 

पपद्ध द्वितीय चरण

कुल नामांकन अनुपात सूचकांक =

 

पपपद्ध तृतीय चरण

 

साक्षरता का सूचकांक =

2 3 बालिग साक्षरता सूचकांक 1ध्3

 

कुल नामांकन अनुपात सूचकांक

 

 

तालिका से स्पष्ट है छत्तीसगढ़़ के साक्षरता सूचकांक में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है जहाँ वर्ष 2004.05 मेें साक्षरता सूचकांक 0.689 तथा वहीं वर्ष 2013.14 में 0.769 हो गया है। यानि छत्तीसगढ़़ मध्य साक्षरता सूचकांक से उच्च साक्षरता सूचकांक की ओर लगभग पहुंच रहा हैै।

 

3 स्वास्थ्य सूचकांक

स्वास्थ्य सूचकांक को छत्तीसगढ़़ के कुल जन्म दर के आधार पर निकाला गया है।

सूत्र रूप में देखे तोे -

स्वास्थ्य सूचकांक =

 

तालिका में स्पष्ट है कि स्वास्थ्य सूचकांक में बहुत अधिक उच्चावचन है। तथा स्वास्थ्य सूचकांक वर्ष 2004 से 2014 तक निम्न स्तर पर है।

 

4 छत्तीसगढ़़ का मानव विकास सूचकांक

मानव विकास सूचकांक का निर्माण इन तीनों सूचकांको के साधारण औसतों के आधार पर किया गया है।

सूत्र रूप में देखे तो

 

मानव विकास सूचकांक =

 

तालिका में स्पष्ष्ट है छत्तीसगढ़़ के मानव विकास सूचकांक के सुधार हो रहा है। 2004.2005 में जहाँ यह  0.497 था वही 2013-14 में यह 0.568 पर पहुच गया हैं इस प्रकार छत्तीसगढ़ निम्न मानव सूचकांक से 2013.14 मेें यह मध्य मावन विकास सूचकांक के स्तर पर पहुँच गया है।

 

निष्कर्ष:

छत्तीसगढ़ के मानव विकास सूचकांक में सुधार हुआ है। यह परिकल्पना सही पाया गया है।

 

विगत 10 वर्षो में वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक में छत्तीसगढ़़ के मानव विकास सूचकांक में सुधार हो रहा है। वर्ष 2004.05 में जहाँ 0.497 था वहीं वर्ष 2013.14  बढ़कर 0.568 हो गया है। इस प्रकार छत्तीसगढ़़ वर्ष 2004.05  निम्न मानव सूचकांक पर था वहीं वहीं वर्ष 2013.14 में यह मध्य मानव विकास सूचकांक के स्तर पर पहुँच गया है।

 

REFRENCE :-

(1)     Human Development in India 2010 : Analysis to Action New Delhi Govt. of India.

(2)     Govt. of India 2010 : National Sample Suruy Organisation, Ministry of Statistics and Programme Implementation New Delhi.

(3)     Nayak P. : AGWT 302009 Human Development analysis Northeastern Hill University

(4)     Ashok Dasgupta 2013 – NSSO Data Analysis

छत्तीसगढ़ आर्थिक सर्वेक्षण: वर्ष 2004-05 एवं 2014-15

छत्तीसगढ़ मानव विकास प्रतिवेदन - 2007

भरत की जनगणना- 2001-2011

 

 

Received on 12.06.2017       Modified on 19.07.2017

Accepted on 19.08.2017      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2017; 5(4):  143-146 .